साहिर लुधियानवी की नज़्म "जवाहरलाल नेहरु" (व्याख्या सहित)


जिस्म की मौत कोई मौत नहीं होती है 
जिस्म मिट जाने से इंसान नहीं मर जाते 

व्याख्या: साहिर लुधियानवी लिखते हैं कि शरीर का अंत होने से मनुष्य का अंत नहीं होता। यदि शरीर नष्ट भी हो जाए तो इससे मनुष्य नहीं मर जाता। 


धड़कनें रुकने से अरमान नहीं मर जाते 
साँस थम जाने से ऐलान नहीं मर जाते 

व्याख्या: किसी व्यक्ति के दिल की धड़कन रुक जाने से उसकी आकांक्षाएं नहीं मर जाती। अर्थात उसके स्वप्नों और आकांक्षाओं को उसके बाद भी पूरा किया जाता है। यदि उसकी साँसे थम भी जाएं तो उसके उद्घोष, उसके विचार अमर हो जाते हैं। (अरमान: आकांक्षाएं, ऐलान: उद्घोष, घोषणाएं)


होंट जम जाने से फ़रमान नहीं मर जाते 
जिस्म की मौत कोई मौत नहीं होती है 

व्याख्या: मनुष्य की मृत्यु होने पर उसके होंठ जम जाते हैं, यानि प्राण न होने की अवस्था में वह शब्दहीन हो जाता है। साहिर लुधियानवी कहते हैं कि मनुष्य की मृत्यु हो जाने से उसकी बातें मिट नहीं जातीं, वे अमिट होती हैं। यदि शरीर नष्ट भी हो जाए तो इससे मनुष्य नहीं मर जाता।  (फ़रमान: कथन अथवा बातें)


वो जो हर दीन से मुन्किर था हर इक धर्म से दूर 
फिर भी हर दीन हर इक धर्म का ग़म-ख़्वार रहा 

व्याख्या: पहले तीन शेर में एक दार्शनिक भूमिका बांधने के बाद साहिर लुधियानवी इस शेर में नेहरु के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हैं। नेहरु संगठित धर्म को अच्छा नहीं मानते थे। वह तर्क और अनुभव में विश्वास रखते थे, इसलिए उनको संशयवादी भी कहा जाता है। साहिर नेहरु की इसी विशेषता पर लिखते हैं कि नेहरु यद्यपि संगठित धर्म और उसके कर्मकांडों को नकारते थे लेकिन उनके दिल में हर धर्म और मज़हब का दर्द था। इसका तात्पर्य है कि नेहरु के दिल में हर धर्म के मानने वालों के प्रति गहरी संवेदना थी। (मुनकिर: इनकार करने वाला, नकारने वाला, ग़म-ख़्वार: दर्दमन्द, संवेदना युक्त)  


सारी क़ौमों के गुनाहों का कड़ा बोझ लिए 
उम्र-भर सूरत-ए-ईसा जो सर-ए-दार रहा 

व्याख्या: साहिर इस शेर में नेहरु की तुलना हज़रत ईसा मसीह से करते हैं। विदित रहे कि ईसा मसीह को लोगों ने सूली पर चढ़ा दिया था। साहिर लिखते हैं कि नेहरु भी ज़िंदगी भर सभी लोगों के दुखों का भारी बोझ लिए हज़रत ईसा मसीह की तरह सूली पर रहे। तात्पर्य है कि नेहरु सभी के दुखों का बोझ लिए खुद भी ज़िंदगी भर दुख में रहे। (सूरत-ए-ईसा: ईसा मसीह की तरह, सर-ए-दार: सूली पर, दार अर्थात सूली) 


जिस ने इंसानों की तक़्सीम के सदमे झेले 
फिर भी इंसाँ की उख़ुव्वत का परस्तार रहा 

व्याख्या: नेहरु ने इंसानों के बंटवारे के सदमे झेले लेकिन फिर भी वह इंसानों के बीच मैत्री के पक्षधर रहे। नेहरु इंसानों के आपसी रिश्तों को देश और मुल्क की सरहदों से परे मानते थे। नेहरु के मानव-मैत्री के इन्हीं आदर्शों को "पंचशील" कहा गया। (तक़्सीम: विभाजन, बंटवारा, इंसाँ: इंसान, मनुष्य, उख़ुव्वत: भाईचारा, मैत्री)


जिस की नज़रों में था इक आलमी तहज़ीब का ख़्वाब 
जिस का हर साँस नए अहद का मेअमार रहा 

व्याख्या: नेहरु की आँखों में एक सार्वभौमिक सभ्यता (Universal Civilisation) का स्वप्न था। वह तमाम इंसानियत को एक सूत्र में बंधा देखना चाहते थे। उनकी हर एक साँस ने एक नए युग, एक नए दौर का निर्माण किया। (आलमी तहज़ीब: सार्वभौमिक सभ्यता, ख़्वाब: सपना, स्वप्न, अहद: युग/दौर मेअमार: निर्माता, निर्माण करने वाला, इमारत बनाने वाला)


जिस ने ज़रदार-ए-मईशत को गवारा न किया 
जिस को आईन-ए-मसावात पे इसरार रहा 

व्याख्या: नेहरु ने अर्थव्यवस्था में पूंजीवादियों के प्रभुत्व को गवारा नहीं किया और वह समानता के उसूल पर अडिग रहे। (ज़रदार: पूंजीवादी लोग, मईशत: अर्थव्यवस्था, आईन: उसूल, क़ानून, संविधान, मसावात: समानता, बराबरी)


उस के फरमानों की एलानों की ताज़ीम करो 
राख तक़्सीम की, अरमान भी तक़्सीम करो 

व्याख्या: नेहरु के चरित्र चित्रण के बाद साहिर नज़्म के इस तीसरे हिस्से में भारतीयों को कुछ संदेश देना चाहते हैं। साहिर कहते हैं, ऐ हिंदुस्तानियों! नेहरु जी की बातों और उनके उद्घोषों का सम्मान करो। तुमने उनकी अस्थियों को देशभर की धरती पर बाँट लिया तो अब उनकी आकांक्षाओं को भी बाँट लो, उनको अपना बना लो और उनको पूर्ण करने का प्रण लो। (फरमानों: बातों,  एलानों: उद्घोषों, घोषणाओं, ताज़ीम: सम्मान, तक़्सीम: बांटना)


मौत और ज़ीस्त के संगम पे परेशाँ क्यूँ हो 
उस का बख़्शा हुआ सह-रंग अलम ले के चलो 

व्याख्या: ज़िंदगी और मौत के दोराहे पर परेशान क्यूँ हो! सारी परेशानियों को भूलकर नेहरु जी का दिया हुआ तिरंगा अपने हाथ में ले लो और आगे बढ़ते रहो। (मौत: मृत्यु, ज़ीस्त: ज़िंदगी, बख़्शा हुआ: दिया हुआ, सह-रंग अलम: तीन रंग का झण्डा यानि तिरंगा)


जो तुम्हें जादा-ए-मंज़िल का पता देता है 
अपनी पेशानी पर वो नक़्श-ए-क़दम ले के चलो 

व्याख्या: अपने मस्तक/ललाट पर उसके आदर्शों को सुशोभित कर लो जो तुम्हें तुम्हारी मंज़िल के लिए सीधे रास्ते की तरफ़ ले जाए। यहाँ आदर्शों से तात्पर्य समाजवाद, अहिंसा, भाईचारा, समानता जैसे सिद्धांतों से है (जादा: रास्ता, पथ, सीधा रास्ता, मंज़िल: गंतव्य, पेशानी: मस्तक/ललाट, नक़्श-ए-क़दम: पैरों के निशान अर्थात आदर्श)


दामन-ए-वक़्त पे अब ख़ून के छींटे न पड़ें 
एक मरकज़ की तरफ़ दैर-ओ-हरम ले के चलो 

व्याख्या: सांप्रदायिकता पर नेहरु के विचारों की तरफ़ इशारा करते हुए साहिर कहते हैं कि अब समय का आँचल और अधिक लहू-लुहान नहीं होना चाहिए। मैत्री और सांप्रदायिक सद्भाव के जिन आदर्शों को हम नेहरु जी के जीते जी आत्मसात नहीं कर पाए, उनको अब दिल से अपना लेना चाहिए। अब सांप्रदायिक हिंसा नहीं होनी चाहिए। इसीलिए मंदिर और मस्जिद को एक ही केंद्र की तरफ़ लेकर चलो और वह केंद्र आपसी सद्भाव का है। (मरकज़: केंद्र, दैर: मंदिर, हरम: मस्जिद) 


हम मिटा डालेंगे सरमाया-ओ-मेहनत का तज़ाद 
ये अक़ीदा ये इरादा ये क़सम ले के चलो 

व्याख्या: नेहरु जी के सामाजिक-आर्थिक विचारों के बाबत साहिर लिखते हैं हम यह भाव, यह इच्छा और यह निश्चय रखते हैं कि हम भविष्य में मज़दूर और पूंजीवादी के बीच जो असमानता है उसको मिटा कर ही दम लेंगे। ज्ञात रहे कि नेहरु समाजवादी व्यवस्था में यकीन रखते थे। सामजवादी व्यवस्था के उसूल इस बात पर बल देते हैं कि सर्वहारा और बुरजुआ के बीच कोई आर्थिक खाई न रहे। नेहरु साम्यवादी उसूलों के कायल थे लेकिन विश्वभर में साम्यवादी मुल्कों ने जिस तरह हिंसा और रक्तपात का इस्तेमाल करके अपने उद्देश्यों को हासिल किया, नेहरु उसके सख्त खिलाफ़ थे। (सरमाया: पूंजी, मेहनत: श्रम, तज़ाद: फ़र्क, अक़ीदा: भाव/विश्वास) 


वो जो हमराज़ रहा हाज़िर-ओ-मुस्तक़बिल का 
उस के ख़्वाबों की ख़ुशी, रूह का ग़म ले के चलो 

व्याख्या: साहिर कहते हैं कि नेहरु भारत के वर्तमान और भविष्य से परिचित थे। नेहरु जैसे दूरदर्शी महापुरुष के ख्वाबों की खुशी और उनकी आत्मा की पीड़ा को समझना बहुत ज़रूरी है। हिंदुस्तानियों! इस को समझो। (हाज़िर: वर्तमान, मुस्तक़बिल: भविष्य) 


जिस्म की मौत कोई मौत नहीं होती है 
जिस्म मिट जाने से इंसान नहीं मर जाते 

व्याख्या: साहिर लुधियानवी लिखते हैं कि शरीर का अंत होने से मनुष्य का अंत नहीं होता। यदि शरीर नष्ट भी हो जाए तो इससे मनुष्य नहीं मर जाता। 


धड़कनें रुकने से अरमान नहीं मर जाते 
साँस थम जाने से ऐलान नहीं मर जाते 

व्याख्या: किसी व्यक्ति के दिल की धड़कन रुक जाने से उसकी आकांक्षाएं नहीं मर जाती। अर्थात उसके स्वप्नों और आकांक्षाओं को उसके बाद भी पूरा किया जाता है। यदि उसकी साँसे थम भी जाएं तो उसके उद्घोष, उसके विचार अमर हो जाते हैं। (अरमान: आकांक्षाएं, ऐलान: उद्घोष, घोषणाएं)


होंट जम जाने से फ़रमान नहीं मर जाते 
जिस्म की मौत कोई मौत नहीं होती है 

व्याख्या: मनुष्य की मृत्यु होने पर उसके होंठ जम जाते हैं, यानि प्राण न होने की अवस्था में वह शब्दहीन हो जाता है। साहिर लुधियानवी कहते हैं कि मनुष्य की मृत्यु हो जाने से उसकी बातें मिट नहीं जातीं, वे अमिट होती हैं। यदि शरीर नष्ट भी हो जाए तो इससे मनुष्य नहीं मर जाता।  (फ़रमान: कथन अथवा बातें)

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